नीचे जो शब्द है उनको समझते हुए..
स्वयं को और समाज को उसके अनुसार देखने और दिखाने की धारणा को एक जिम्मेदार नागरिक के रूप अनुसरण करने का प्रयत्न करें..
"नीतिशास्त्र और मानवीय सह -संबंध "
PART-1
मूल्य :- मूल्य की व्याख्या विभिन्न क्षेत्रों में अपने-अपने तरीके से होती है। जैसे अर्थव्यवस्था में जिसकी जितनी मांग है उसका उतना मूल्य है, नीतिशास्त्र में जो अनुचित है वह मूल्यहीन है और सौंदर्यशास्त्र में जो सुंदर है वह मूल्यवान है। मूल्यों का अर्थ सबसे गहरे नैतिक आदर्शों से होता है। उदाहरण के लिये, शांति, न्याय, सहिष्णुता, आनंद, ईमानदारी, समयबद्धता आदि प्रसिद्ध मूल्य हैं। मूल्यों के संबंध में समाज की समझ होती है कि वे सामाजिक जीवन को संभव व श्रेष्ठ बनाने के लिये आवश्यक हैं।
नैतिक मूल्यों का निर्धारण
नैतिक मूल्यों का विकास समाज के अंदर होता है। परंतु, इनके निर्धारण एवं विकास में अनेक आधारों की भूमिका होती है। यथाः भौगोलिक परिस्थितियाँ, अन्य समाजों से अन्तःक्रिया, जनांकिकी, सांस्कृतिक सापेक्षता, अर्थव्यवस्था आदि।
1 भौगोलिक परिस्थितियाँ: किसी प्रदेश विशेष की भौगोलिक परिस्थितियाँ वहाँ विभिन्न मूल्यों के निर्धारण में महत्ती भूमिका निभाती हैं। जैसे:
a तापमान: अरब देशों में प्रायः धूल भरी आँधियाँ चलती रहती हैं। इनसे बचने के लिये वहाँ महिलाएँ प्रायः बुर्का तथा पुरुष भी ज्यादा वस्त्र पहनते हैं। वहीं, हम देखते हैं कि उष्णकटिबंधीय गर्म क्षेत्रों के लोग प्रायः ढीले-ढाले तथा कम वस्त्र पहनते हैं। जैसे-जैसे हम ठण्डे प्रदेशों (यूरोप) की ओर जाते हैं तो वहाँ ज़्यादा वस्त्र पहने जाते हैं तथा खान-पान में मद्य (Alcohol) का प्रयोग सामान्य माना जाता है।
b उपजाऊ भूमिः जिन प्रदेशों की भूमि उपजाऊ होती है, वहाँ प्रायः शाकाहार का प्रचलन मिलता है, वहीं इसके विपरीत परिस्थितियों में मांसाहार की प्रवृत्ति पायी जाती है।
c उच्चावचः पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में धैर्य और मेहनत जैसे मूल्य प्रायः मैदानी क्षेत्रों के लोगों से अधिक पाया जाता है क्योंकि उनका जीवन से संघर्ष ज्यादा होता है।
2 अन्य समाजों से अन्तर्क्रियाः जो ग्रामीण या आदिवासी क्षेत्र अन्य समाजों / गाँवों से कम संपर्क में होते हैं, उनमें रूढ़िवादिता (Orthodoxy) अधिक पायी जाती है। इसके विपरीत किसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित गाँव या किसी बड़े शहर में मूल्यों में गतिशीलता (Flexibility) अधिक मिलती है।
3 जनांकिकीः विभिन्न समाजों में जनांकिकी भी मूल्यों के निर्धारण में अहम भूमिका निभाती है। जनांकिकी के अंतर्गत विभिन्न पहलू आते हैं- लिंगानुपात, जीवन प्रत्याशा, आबादी आदि।
a लिंगानुपातः जिन समाजों में लिंगानुपात बराबर होता है वहाँ प्रायः एक विवाह की परंपरा मिलती है, वहीं यदि यह अनुपात बहुत अधिक बिगड़ा हो तो प्रायः बहुपत्नी या बहुपति विवाह का प्रचलन देखने को मिलता है। उदाहरण के तौर पर आज भी देहरादून (भारत) के पास एक आदिवासी इलाके के खस समुदाय में बहुपति प्रथा का प्रचलन है।
b जीवन प्रत्याशाः जिन समाजों में जीवन- प्रत्याशा बहुत अधिक होती है और संसाधन भी पर्याप्त होते हैं, वहाँ वृद्धों को ज्यादा सुविधाएँ और सम्मान मिलता है जैसे- जापान में। परंतु यदि जीवन प्रत्याशा अत्यधिक हो और संसाधनों की कमी, तो उस समाज में वृद्धों की स्थिति शोचनीय हो जाती है। उदाहरण के तौर पर उत्तरी ध्रुव पर पाई जाने वाली ऐस्कीमो जनजाति में वृद्ध संसाधनों के अभाव में युवा पीढ़ी के भविष्य के लिये अपनी इच्छा से अपने प्राण दे देते हैं।
c आबादी: मूल्यों के निर्धारण में समाज की आबादी भी अहम भूमिका निभाती है। जैसे- जिन राष्ट्रों में आबादी कम है वहाँ प्रायः गर्भपात जैसे मूल्यों की स्वीकृति नहीं पाई जाती। वहीं अधिक आबादी वाले राष्ट्रों में इसके विपरीत स्थिति मिलती है।
4 आर्थिक कारकः किसी समाज में अर्थव्यवस्था का क्या प्रारूप है, यह निश्चित तौर पर वहाँ कुछ मूल्यों का निर्धारण करता है। जैसे: पूंजीवादी देशों (अमेरिका आदि) में 'व्यक्तिवाद' को अहमियत मिलती है तो समाजवादी देशों (जैसे क्यूबा) में 'सामाजिक योगदान की इच्छा' का मूल्य विकसित होता है।
● अर्थव्यवस्था के विकास के स्तर के आधार पर भी मूल्यों का निर्धारण होता है। जैसे: जिन समाजों/राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र (खेती आदि) की प्रधानता है वहाँ भौगोलिक स्थिरता के प्रति रुझान, रूढ़िवादिता, पर्यावरण के प्रति लगाव की प्रवृत्तियाँ मिलेंगी। कहीं जिन समाजों/राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था में तृतीयक क्षेत्र (सेवा क्षेत्र) की प्रधानता है वहाँ के मूल्यों एवं जीवन में प्रायः गतिशीलता, बहुसंस्कृतिवाद की स्वीकृति तथा पर्यावरण के प्रति अरुचि जैसी प्रवृत्तियाँ मिलती हैं।
PART-2
मूल्य विकसित करने में परिवार, समाज और शैक्षणिक संस्थाओं की भूमिका
1 मूल्यों के विकास में परिवार की भूमिका:
✒️ मूल्यों के विकास में परिवार वह पहली सीढ़ी है जिस पर चढ़कर मानवीयता के लक्ष्य को पाना आसान लगता है। इसलिये परिवार कब, कैसे, कितना और किस प्रकार के मूल्यों को देना चाहता है यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
✒️6 वर्ष तक की आयु एक ऐसा पायदान है जब बच्चा दूसरों के आचरण से सबसे अधिक प्रभावित होता है, इसलिये प्राथमिक स्तर पर मूल्य इसी उम्र में निर्धारित होते हैं। हालाँकि, बाद में भी मूल्य विकसित होते हैं लेकिन प्रभाव का स्तर धीरे-धीरे कम होता जाता है।
✒️प्रशिक्षण, प्रोत्साहन, निंदा, दंड कुछ ऐसे उपकरण हैं जिनसे ये मूल्य विकसित किये जा सकते हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि परिवार एकल है या संयुक्त। संभव है एकल परिवार से वैयक्तिक होने का मूल्य प्राप्त हो और संयुक्त परिवार से साथ रहने का। यह भी संभव है कि संयुक्त परिवार यदि 'पितृसत्तात्मक' है तो इस बात से स्त्रियों के प्रति कम सम्मान का मूल्य प्राप्त हो।
✒️परिवार का शैक्षणिक स्तर तथा आर्थिक स्तर मूल्यों की पृष्ठभूमि तय करने में सहायक होते हैं।
2 मूल्यों के विकास में समाज की भूमिका:
✒️समाज की असली भूमिका वैसे तो विद्यालय जाने के साथ शुरू होती है किंतु उससे पूर्व 6 वर्ष तक समाज और परिवार मूल्य विकास में बराबर भागीदार होते हैं।
✒️किशोरावस्था एक ऐसा पड़ाव है जब समाज का दबाव सर्वाधिक होता है। आरंभ में मूल्यों का विकास कम होता है लेकिन समाज से ज्यों-ज्यों संपर्क बढ़ता है, विकास भी उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। मीडिया, खुद पर्यवेक्षी हो जाना, सामाजिक समूहों से वार्तालाप, सह-शिक्षा विद्यालय आदि से समाज के नैतिक मानदंड, सामाजिक गतिशीलता, रूढ़ि, परिवर्तन जैसे विचार का प्रभाव पड़ता है। विभिन्न धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोगों के साथ धैर्य, सहिष्णुता जैसे मूल्यों को विकसित करने में सहायक होते हैं।
✒️ध्यातव्य है कि सामाजिक प्रभाव अंतर्क्रिया की मात्रा पर निर्भर करता है। जो जितना सामाजिक होगा उस पर समाज का उतना ही प्रभाव पड़ेगा।
3 मूल्यों के विकास में शिक्षण संस्थानों की भूमिका:
✒️शिक्षण संस्थान दो स्तरों पर मूल्य विकास में योगदान देते हैं- आधारभूत शिक्षा के स्तर पर तथा उच्च शिक्षा के स्तर पर।
✒️आधारभूत मूल्यों का प्रभाव ज़्यादा होता है जबकि उच्च शिक्षण संस्थान प्रायोगिक मूल्य का विकास कर पाते हैं। व्यक्तित्व परिवर्तन की संभावना उच्च स्तर पर ज़्यादा होती है।
✒️विभिन्न विचारधाराओं के संपर्क में आने का क्रम भी उच्च शिक्षण संस्थानों से ही शुरू होता है, जो मूल्यों को प्रभावित करते हैं। जैसे मार्क्सवादी विचार से संपर्क में आने से वर्ग संघर्ष को समझना आदि।
विभिन्न पाठ्यक्रमों द्वारा स्वतंत्रता, समानता, अहिंसा, नैतिक शिक्षा का
प्रभाव पड़ना। उदाहरण के लिये, इतिहास के पाठ्यक्रम यदि गांधी जी
का अन्याय के विरूद्ध खड़ा होना या सत्य, अहिंसा का पाठ प्राथमिक
और उच्च शिक्षण संस्थान में पढ़ाया जाए तो इसका प्रभाव मूल्य विकास
में निश्चित तौर पर सहायक होगा।
✒️इसी प्रकार अध्यापक और छात्र समूह का भी अहम योगदान होता है।
PART-3
मानवीय कृत्यों में नैतिकता के निर्धारक एवं परिणाम
■ प्रायः सभी समाजों में दंड की व्यवस्था नैतिक सिद्धांतों के आलोक में लागू की जाती रही है। किसी मनुष्य का कृत्य नैतिक है, अनैतिक है या निर्नैतिक; इसकी सुनिश्चितता के उपरान्त ही प्रायः दंड संबंधी निर्णय लिये जाते रहे हैं। सामान्यतः अनैच्छिक कर्म और बच्चों द्वारा किये कार्य निर्नैतिक कृत्यों की श्रेणी में आते हैं।
✏️ अब प्रश्न यह है कि किसी कर्म को नैतिक या अनैतिक सिद्ध करने वाले निर्धारक तत्त्व कौन-से होते हैं। विभिन्न समाजों एवं विभिन्न कालों में इन निर्धारक तत्त्वों में बदलाव होता रहा है। प्रायः ये निर्धारक तत्त्व निम्नलिखित माने गए हैं-
● कृत्य (Act) अपने आप में नैतिक/अनैतिक
● कर्त्ता (Actor)
• पीड़ित/लाभार्थी (Victim/Beneficiary)
● इरादा / प्रयोजन (Intention)
० परिस्थितियाँ (Circumstances)
० परिणाम (Consequences
✒️कृत्य (Act): कई बार समाज कुछ कृत्यों को स्पष्ट तौर पर अनैतिक घोषित कर देता है। वह कृत्य चाहे किसी के भी द्वारा तथा कैसी भी परिस्थिति में ही चाहे क्यों न किया गया हो, अनैतिक ही समझा जाता है। उदाहरण के तौर पर कुछ सौ वर्ष पहले इंग्लैंड में लगभग 350 कृत्यों पर फाँसी की सज़ा निश्चित थी। जो समाज केवल कृत्य के आलोक में कर्म के नैतिक/अनैतिक होने का निर्णय करता है, उस समाज की न्याय व्यवस्था एवं नैतिक स्तर को काफी पिछड़ा समझा जाता है।
✒️कर्त्ता (Actor):निश्चित तौर पर किसी कृत्य के नैतिक या अनैतिक होने के निर्धारण में कर्त्ता की एक बड़ी भूमिका होती है। मान लीजिये किसी व्यक्ति ने चोरी जैसा अनैतिक कृत्य किया परंतु ऐसा उसने अपनी गरीबी से तंग आकर किया। ऐसी स्थिति में इस व्यक्ति का कृत्य उस अमीर व्यक्ति के कृत्य से कम अनैतिक समझा जाएगा जिसने ऐशो-आराम के लिये कोई बैंक घोटाला किया हो।
✒️पीड़ित / लाभार्थी (Victim / Beneficiary):किसी कृत्य को नैतिक या अनैतिक कहे जाने में पीड़ित या लाभार्थी को भी देखा जाता है। उदाहरण के तौर पर किसी गरीब की ज़मीन पर कब्जा करना, किसी अमीर व्यक्ति की कीमती वस्तु हथियाने से ज़्यादा अनैतिक है। इसी प्रकार किसी वृद्ध को आजीविका का साधन प्रदान करना, किसी युवा को यह सुविधा देने से ज़्यादा नैतिक है।
✒️इरादा / प्रयोजन (Intention):इरादे की भूमिका आधुनिक समाज में किसी कृत्य के नैतिक या अनैतिक होने के निर्धारण में बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यहाँ हम दो तरह के उदाहरण देख सकते हैं। मान लीजिये कोई व्यक्ति किसी की हत्या के इरादे से उसके घर जाकर उसकी डमी को ही अपना असली शत्रु समझकर गोली मारकर भाग जाता है; यहाँ हत्या नहीं हुई परंतु, इरादा हत्या का ही था। दूसरी स्थिति में आप अपने किसी मित्र को, जोकि किसी कुएँ की मुंडेर पर बैठा है, मज़ाक के लिये अचानक चौंकाते हो और वह कुएँ में गिरकर मर जाता है। यहाँ आपका इरादा हत्या का नहीं था, परंतु किसी की जान चली गई है। ऐसी स्थिति में इरादा ही कृत्य की नैतिकता का निर्धारण करेगा।
✒️परिस्थितियाँ (Circumstances):किन परिस्थितियों में कोई कृत्य हुआ है, यह उस कृत्य के नैतिक या अनैतिक होने के निर्धारण में निर्णायक भूमिका निभाता है। उदाहरण के तौर पर किसी की हत्या करना अनैतिक समझा जाता है किन्तु यदि कोई व्यक्ति किसी महिला से बलात्कार की कोशिश कर रहा है और उस महिला के हाथ में चाकू आ जाता है और वह अपने बचाव के लिये उस व्यक्ति की हत्या कर देती है। ऐसी स्थिति में वह कृत्य (हत्या) अनैतिक नहीं समझा जाएगा।
✒️परिणाम (Consequence):परिणाम के आधार पर किसी कृत्य को नैतिक या अनैतिक कहने के परिप्रेक्ष्य में एक प्रसिद्ध सिद्धांत है- दोहरे प्रभाव का सिद्धांत (Principle of Double effect)। मान लीजिये अच्छे इरादे से कोई कृत्य किया गया जिसके प्राथमिक प्रभाव के रूप में सकारात्मक परिणाम आते हैं, परंतु द्वितीयक प्रभाव के रूप में हम कुछ अनैतिक परिणाम पाते हैं तो उस कृत्य को सिर्फ द्वितीयक प्रभाव के आधार पर अनैतिक नहीं कहा जा सकता।
PART-4
after few days...
"केस स्टडीज को हल करने की रणनीति "
नीचे जो केस स्टडीज हल है उनको पढ़ने के बाद आप अपने तरीके भी उन प्रश्नों को हल करने के comment box में जरूर भेजे..
केस स्टडीज 1-
आप भारत की किसी बड़ी तेल कंपनी के उच्च अधिकारी हैं। भारत सरकार ने आपको किसी दूसरे देश की बड़ी परियोजना की निविदा करने के लिये भेजा है। आपको पता चलता है कि उस देश में कोई भी परियोजना बिना रिश्वत दिये नहीं मिलती है। प्रतिस्पर्धी देशों के अधिकारी संभवतः रिश्वत देने की तैयारी करके आए हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ भ्रष्टाचार रोधी अभिसमय का हस्ताक्षरी राष्ट्र है। ऐसी स्थिति में आप भारत सरकार को क्या सलाह देंगे और क्यों? विशेषतः अगर आप जानते हैं कि वह परियोजना देश के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
समाधान: मैं निम्नलिखित चरणों में निर्णय लूंगा-
🌑सर्वप्रथम यह देखना होगा कि क्या निविदा प्रक्रिया में सम्मिलित अन्य देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के अभिसमय पर हस्ताक्षर किये हैं। अगर भारत अकेला ही ऐसा राष्ट्र है जिसने अभिसमय पर हस्ताक्षर किये हैं तो रिश्वत देना विशेष रूप से अनैतिक होगा। ऐसे में मैं सलाह दूंगा कि रिश्वत न दी जाए। इसके परिणामस्वरूप हमें इस विशेष मामले में हानि हो सकती है परंतु संभवत: कहीं और कोई अन्य परियोजना हमारी ईमानदार छवि के कारण मिल भी सकती है।
🌑अगर अन्य देश भी उस अभिसमय के हस्ताक्षरकर्ता हैं और गैर आधिकारिक (तथा गोपनीय) स्तर पर रिश्वत दे रहें हैं तो मेरा निर्णय अलग होगा। इस स्थिति में यह स्पष्ट है कि परियोजना रिश्वत के आधार पर ही मिलेगी चाहे किसी को भी मिले अर्थात् नैतिक अशुभ तो होगा ही। यह भी तय है कि जिस देश को परियोजना मिलेगी वह अपनी घोषित प्रतिबद्धता से पीछे हटेगा। ऐसे में नैतिक उत्तरदायित्व सिर्फ एक देश का नहीं बनता।
🌑ऐसी स्थिति में मेरा निर्णय निम्नलिखित बिंदुओं पर आधारित होगा:
∆मैं इस परिस्थिति में राष्ट्रहित को सर्वोच्च प्राथमिकता दूंगा क्योंकि नैतिक अशुभ तो मेरे किसी भी निर्णय के बाद भी होना ही है। मैं भारत सरकार को सलाह दूंगा कि वह रिश्वत की राशि भेज दे।
∆मैं परियोजना देने वाले देश के अधिकारियों से निवेदन करूंगा कि रिश्वत की बजाय कंपनी की गुणवत्ता पर ध्यान दें क्योंकि दीर्घकालिक तौर पर उस देश को रिश्वत की राशि से अधिक की हानि तय है। जो रिश्वत देगा वो या तो गुणवत्ता से समझौता करेगा या कीमतें बढ़ा देगा।
∆अगर यह संभव नहीं है तो कोशिश करूंगा कि रिश्वत की जो राशि मांगी गई है उसे देने के बजाय अपनी निविदा की कीमतें कुछ कम कर दी जाएँ ताकि उतना ही लाभ उस देश को मिल जाए।
● अगर इस पर भी सहमति नहीं बनती है तो रिश्वत देना ही उचित विकल्प होगा।
🌑 गौरतलब है कि इस स्थिति में हमें दोनों तरफ अनैतिक विकल्पों में से ही चुनना है। रिश्वत देना सामान्यतः अनैतिक है किंतु अपने देश की जरूरतें पूरी न कर पाना, उसकी प्रगति के लिये आवश्यक कूटनीति का प्रयोग न कर पाना भी अनैतिक ही है। मेरी दृष्टि में कम अनैतिक यही है कि परियोजना लेने के लिये रिश्वत दे दी जाए।
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