यह एडिटोरियल 14/01/2025 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित "How Not To Run Unis" पर आधारित है। यह लेख कुलपति नियुक्तियों पर UGC के मसौदा दिशा-निर्देशों के इर्द-गिर्द विवाद को उजागर कर राज्य की स्वायत्तता और भारत की उच्च शिक्षा में व्यापक चुनौतियों पर चिंता जताता है। NEP-2020 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये शासन, वित्त पोषण और शैक्षणिक गुणवत्ता में तत्काल सुधार की आवश्यकता है।
कुलपति की नियुक्तियों पर UGC के मसौदा दिशा-निर्देशों पर हाल ही में उठे विवाद ने भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में आवश्यक सुधारों के संदर्भ में व्यापक बहस को फिर से बढ़ा दिया है। यद्यपि कुलपति नियुक्तियों के प्रस्तावित केंद्रीकरण द्वारा राज्य की स्वायत्तता को संभावित रूप से कमज़ोर करने के लिये आलोचना की गई है, यह भारतीय विश्वविद्यालयों के समक्ष मौजूद गंभीर चुनौतियों के लिये तो बहुत ही कम है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में अधिक संस्थागत स्वायत्तता और अकादमिक उत्कृष्टता की परिकल्पना की गई है, लेकिन इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये कई जटिल मुद्दों जैसे: शासन संरचनाओं और वित्त पोषण तंत्र से लेकर अकादमिक गुणवत्ता एवं शोध आउटपुट तक को हल करने की आवश्यकता है। जैसा कि भारत खुद को वैश्विक ज्ञान केंद्र के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य रखता है, हमारे उच्च शिक्षा परिदृश्य को पुनर्जीवित करने के लिये आवश्यक सुधारों के व्यापक परीक्षण के लिये समय सही है।
भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में क्या प्रमुख सुधार किये गए हैं ?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)- 2020: NEP-2020 उच्च शिक्षा में शुरू किया गया आधारशिला सुधार है, जो लचीलेपन, बहु-विषयक शिक्षा और वैश्विक मानकों पर केंद्रित है।
यह लचीलेपन और आजीवन अधिगम को बढ़ावा देने के लिये डिग्री कार्यक्रमों में 5+3+3+4 संरचना, बहु प्रवेश-निकास विकल्पों को प्रस्तुत करता है।
इस नीति का लक्ष्य वर्ष 2035 तक उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (GIR) को half तक बढ़ाना है जिसमें व्यावसायिक शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार पर ज़ोर दिया गया है।
यह सख्त अनुशासन-आधारित प्रणाली को अंतःविषयक और छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण से प्रतिस्थापित करता है।
अकादमिक क्रेडिट बैंक: अकादमिक क्रेडिट बैंक (ABC) प्रणाली छात्रों को विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थानों से अर्जित अकादमिक क्रेडिट को संग्रहीत और स्थानांतरित करने की अनुमति देती है, जिससे डिग्री कार्यक्रमों को पूरा करने में लचीलापन मिलता है।
इससे बहुविध प्रवेश-निकास विकल्पों को बढ़ावा मिलता है और यह सुनिश्चित होता है कि संस्थागत परिवर्तनों के कारण छात्रों की शैक्षणिक प्रगति बाधित न हो।
राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान (NRF): NEP-2020 के तहत प्रस्तावित NRF का उद्देश्य अंतःविषय अनुसंधान को वित्तपोषित करके और शिक्षा-उद्योग सहयोग को बढ़ावा देकर रिसर्च ईको सिस्टम में सुधार करना है।
इसका उद्देश्य नवाचार एवं उद्यमशीलता को बढ़ावा देना, सामाजिक चुनौतियों का समाधान करना तथा भारत के वैश्विक अनुसंधान उत्पादन को बढ़ाना है।
डिजिटल लर्निंग और एडटेक पर ज़ोर: सरकार ने शिक्षा के डिजिटलीकरण को प्राथमिकता दी है, विशेषकर कोविड-19 विश्वमारी के दौरान।
SWAYAM, DIKSHA और PM eVidya जैसी पहलें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक अभिगम में सुधार के लिये व्यापक मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम (MOOC) और डिजिटल संसाधन प्रदान करती हैं।
उच्च शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण: भारत अपनी शिक्षा प्रणाली को वैश्विक संस्थानों के लिये खोल रहा है, जिससे विश्व भर के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों को भारत में परिसर स्थापित करने की अनुमति मिल रही है।
विदेशी छात्रों को आकर्षित करने के लिये भारत में अध्ययन कार्यक्रम शुरू किया गया है, जबकि भारत के वैश्विक शिक्षा फूटप्रिंट को बढ़ाने के लिये भारतीय विश्वविद्यालयों को विदेशों में परिसर स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है।
उदाहरण के लिये, IIT मद्रास का ज़ांज़ीबार परिसर अंतःविषय शिक्षा में IIT मद्रास संकाय की व्यापक विशेषज्ञता का लाभ प्रदान करता है।
अटल टिंकरिंग लैब्स और स्टार्ट-अप ईकोसिस्टम: अटल इनोवेशन मिशन (Point) के तहत अटल टिंकरिंग लैब्स जैसी पहल छात्रों में नवाचार एवं उद्यमिता को प्रोत्साहित करती है।
3Dप्रिंटर और रोबोटिक्स किट जैसे आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित ये प्रयोगशालाएँ विद्यार्थियों को छोटी उम्र से ही रचनात्मकता और समस्या समाधान को बढ़ावा देती हैं।
संकाय गुणवत्ता और भर्ती में सुधार: पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं शिक्षण मिशन (PMMMNMTT) संकाय विकास, शिक्षक प्रशिक्षण और शिक्षण सुधार पर ध्यान केंद्रित करता है।
उभरते भारत के लिये PM SHRI स्कूल: हालाँकि स्कूली शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए, PM SHRI स्कूलों का लक्ष्य NEP-2020 सिद्धांतों को लागू करने के लिये रोल मॉडल के रूप में कार्य करना है, जो उच्च शिक्षा में भी दिखाई देगा।
ये स्कूल बहु-विषयक शिक्षा, डिजिटलीकरण और हर्षित अधिगम अनुभवों पर ज़ोर देते हैं तथा छात्रों को उच्च शिक्षा की चुनौतियों के लिये तैयार करते हैं।
लचीले डिग्री कार्यक्रम और आजीवन शिक्षा: विश्वविद्यालय अब विविध शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये कई निकास विकल्पों के साथ 4-वर्षीय बहु-विषयक स्नातक कार्यक्रम प्रदान करते हैं।
MOOC, डिजिटल पुस्तकालयों और सतत् शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से आजीवन अधिगम की पहल कार्यरत पेशेवरों के लिये कौशल उन्नयन के अवसर सुनिश्चित करती है।
भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं ?
निम्नस्तरीय रिसर्च ईको-सिस्टम: भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली एक सुदृढ़ अनुसंधान संस्कृति को बढ़ावा देने में पिछड़ी हुई है, तथा अंतःविषयक एवं उद्योग-उन्मुख अनुसंधान पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है।
सीमित वित्तपोषण, बुनियादी अवसंरचना की कमी, तथा नवाचार के लिये प्रोत्साहनों का अभाव, विशेष रूप से टियर-2 व टियर-3 संस्थानों में, इस समस्या को और भी गंभीर बना देता है।
NEP-2020 के तहत राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान जैसी पहलों की स्थापना के बावजूद, भारत का अनुसंधान व्यय सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.7% है, जो इसके वैश्विक औसत 1.8% से बहुत पीछे है।
ग्लोबल एनरोलमेंट इंडेक्स-2023 में भारत 40वें स्थान पर है, जो मलेशिया और थाईलैंड जैसे देशों से भी पीछे है।
संकाय की कमी और गुणवत्ता का अंतर : भारत में योग्य संकाय की भारी कमी है, जिससे संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
यहाँ तक कि IIT और IIM जैसे प्रमुख संस्थानों में भी क्रमशः 40% और 31% संकाय पद रिक्त हैं, जबकि अधिकांश टियर-2 व टियर-3 कॉलेज अपर्याप्त वेतन और व्यावसायिक विकास की कमी के कारण कुशल शिक्षकों को आकर्षित करने के लिये संघर्ष करते हैं।
उच्च शिक्षा में शिक्षक-छात्र अनुपात 1:26 है, जो वैश्विक मानकों द्वारा निर्धारित आदर्श अनुपात 1:10 से काफी कम है।
पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं शिक्षण मिशन जैसे कार्यक्रमों के बावजूद, भर्ती और व्यावसायिक विकास संबंधी पहल अपर्याप्त रही हैं।
उच्च शिक्षा में कम सकल नामांकन अनुपात (GIR): उच्च शिक्षा में भारत का GIR 27.3% (AISHE-2023) पर कम बना हुआ है।
यह उच्च शिक्षा तक असमान अभिगम को उजागर करता है, विशेष रूप से सीमांत समूहों और ग्रामीण आबादी के लिये।
यद्यपि NEP-2020 जैसी पहलों का लक्ष्य वर्ष 2035 तक half GIR हासिल करना है, फिर भी सामर्थ्य, बुनियादी अवसंरचना में अंतराल और लैंगिक असमानता जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
उद्योग-अकादमिक जगत के बीच अपर्याप्त समन्वय: अकादमिक जगत और उद्योग जगत के बीच गहन संबंध नहीं है, संस्थान पाठ्यक्रम को बाज़ार की मांग के अनुरूप ढालने में विफल हो रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्नातकों की रोज़गार क्षमता कम हो रही है।
वर्ष 2024 में भारत की रोज़गार दर 54.81% रही, जो कौशल-उन्मुख प्रशिक्षण की कमी को उजागर करती है।
"प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस" पहल जैसी योजनाओं के बावजूद, अधिकांश कॉलेज कार्य-संबंधी शिक्षण अवसरों को एकीकृत करने में विफल रहते हैं।
शासन संबंधी चुनौतियाँ और अति-केंद्रीकरण: भारत के उच्च शिक्षा प्रशासन को अत्यधिक केंद्रीकरण, स्वायत्तता की कमी और प्रशासनिक अकुशलता की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
UGC और AICTE जैसी नियामक संस्थाओं के अधिदेशों का ओवरलैप होना और सीमित संस्थागत स्वतंत्रता के कारण नवाचार में बाधा उत्पन्न होती है तथा प्रभावी निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न होती है।
कुलपति नियुक्तियों पर UGC के मसौदा दिशानिर्देशों पर हालिया विवाद इस मुद्दे को उजागर करता है।
आलोचकों का तर्क है कि कुलपति नियुक्तियों का प्रस्तावित केंद्रीकरण राज्य की स्वायत्तता और संघीय सिद्धांतों को कमज़ोर करता है, जिससे संस्थागत स्वतंत्रता के साथ उत्तरदायित्व को संतुलित करने के लिये शासन सुधारों की आवश्यकता प्रतिबिंबित होती है।
डिजिटल डिवाइड और असमान डिजिटलीकरण: कोविड-19 के बाद डिजिटल शिक्षा ने गति पकड़ी, ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना के कारण इसका अंगीकरण असमान रहा है।
वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अभी तक केवल 34% स्कूलों में ही इंटरनेट की सुविधा है तथा half से अधिक स्कूलों में कार्यात्मक कंप्यूटर नहीं हैं।
PM eVidya और SWAYAM जैसी सरकारी पहलों का उद्देश्य अभिगम को बढ़ाना है, लेकिन उनकी पहुँच सीमित है।
इसके अतिरिक्त, डिजिटल उपकरणों पर शिक्षक प्रशिक्षण का अभाव एडटेक सॉल्यूशन्स की क्षमता को और भी सीमित कर देता है।
वित्त पोषण संबंधी बाधाएँ और बढ़ता निजीकरण: उच्च शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 4.1% और 4.6% पर बना हुआ है।
अपर्याप्त सरकारी सहायता के कारण, अब शिक्षा क्षेत्र में निजी संस्थाओं का वर्चस्व है, तथा भारत में 78.6% कॉलेज निजी तौर पर प्रबंधित हैं।
निजीकरण पर यह अत्यधिक निर्भरता वहनीयता और गुणवत्ता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करती है। उदाहरण के लिये, निजी कॉलेज प्रायः अत्यधिक फीस वसूलते हैं, जिससे आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये अभिगम में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, जबकि कई कॉलेजों में NAAC मान्यता या गुणवत्ता आश्वासन तंत्र का अभाव होता है।
गुणवत्ता की अपेक्षा मात्रा पर ध्यान: भारत में उच्च शिक्षा के विस्तार में गुणवत्ता बनाए रखने की अपेक्षा संस्थानों की संख्या बढ़ाने को प्राथमिकता दी गई है।
देश में 56,000 से अधिक कॉलेज और 1,113 विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से अधिकांश में उचित मान्यता और सक्षम संकाय का अभाव है।
भारत में कुल 1,113 विश्वविद्यालय और 43,796 कॉलेज हैं, लेकिन केवल 37.6% विश्वविद्यालय एवं 20.7% कॉलेज ही NAAC द्वारा मान्यता प्राप्त हैं, जबकि शेष गुणवत्ता मानदंडों से नीचे काम करते हैं।
इस व्यापक प्रसार ने शैक्षणिक मानकों को कमज़ोर कर दिया है, तथा ऐसे संस्थानों से स्नातक करने वाले छात्रों को प्रायः रोज़गार के अयोग्य समझा जाता है।
सीमित अंतर्राष्ट्रीयकरण: भारत अभी तक वैश्विक स्तर पर एक पसंदीदा उच्च शिक्षा गंतव्य के रूप में उभर नहीं पाया है, सत्र 2021-22 तक केवल 46,000 विदेशी छात्र ही भारतीय संस्थानों में अध्ययन कर रहे थे।
"भारत में अध्ययन" कार्यक्रम जैसी अनुकूल नीतियों और NEP-2020 के अंतर्राष्ट्रीय शाखा परिसरों के लिये प्रोत्साहन के बावजूद, पुरानी शिक्षा पद्धति, कम वैश्विक रैंकिंग और निम्नस्तरीय बुनियादी अवसंरचना जैसे मुद्दे विदेशी छात्रों को रोकते हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय भारत का एकमात्र संस्थान है जिसे QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग: सस्टेनेबिलिटी 2024 में शीर्ष 200 में स्थान दिया गया है, जो भारत की सीमित वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को दर्शाता है।
पाठ्यक्रम में नवीनता का अभाव: भारत में उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम पुराना, कठिन और 21वीं सदी के कौशल तथा अंतःविषयक दृष्टिकोण से असंगत है।
पश्चिमी संस्थानों ने बहु-प्रवेश और निकास प्रणाली को सफलतापूर्वक अपना लिया है, लेकिन भारतीय संस्थानों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसा कि शिक्षा पर संसद की स्थायी समिति ने कहा है।
इसके अलावा, अधिकांश विश्वविद्यालयों में Man-made intelligence, रोबोटिक्स और डेटा साइंस जैसे उभरते क्षेत्रों के लिये अद्यतन पाठ्यक्रम का अभाव है जिससे स्नातक आधुनिक नौकरी बाज़ारों के लिये अयोग्य हो जाते हैं।
आधुनिकीकरण में यह विफलता ग्लोबल एम्प्लॉयबिलिटी यूनिवर्सिटी रैंकिंग एंड सर्वे (GEURS) 2025 में स्पष्ट है, IIT दिल्ली और IISc बेंगलुरु सहित केवल 10 भारतीय संस्थान, स्नातक रोज़गार के लिये वैश्विक स्तर पर शीर्ष 250 विश्वविद्यालयों में शुमार हैं।
भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं ?
अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना: अनुसंधान-संचालित पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये, संस्थानों को अंतःविषय अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करके मात्रा की अपेक्षा गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
शिक्षा जगत, उद्योग और सरकार को जोड़ने वाले अनुसंधान और नवाचार क्लस्टरों की स्थापना से Simulated intelligence, हरित ऊर्जा एवं स्वास्थ्य सेवा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में परिणामों को बढ़ाया जा सकता है।
NEP-2020 के तहत प्रस्तावित राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) को परिसरों के भीतर स्टार्टअप और इनक्यूबेटरों को बढ़ावा देने के लिये अटल इनोवेशन मिशन (Point) के साथ मिलकर काम करना चाहिये।
उद्योग-अकादमिक संबंधों को मज़बूत करना: उच्च शिक्षा संस्थानों को रोबोटिक्स, ब्लॉकचेन और डेटा साइंस जैसे उभरते क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बाज़ार-उन्मुख पाठ्यक्रम विकसित करने के लिये उद्योगों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग करना चाहिये।
उत्कृष्टता केंद्र (CoE) की स्थापना, "प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस" की नियुक्ति और डिग्री कार्यक्रमों में एकीकृत इंटर्नशिप की पेशकश जैसे उपाय कौशल अंतर को समाप्त कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) को विश्वविद्यालयों से जोड़ने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि स्नातक व्यावहारिक और नौकरी-प्रासंगिक कौशल के साथ उद्योग के लिये तैयार हों।
संकाय भर्ती और प्रशिक्षण में सुधार: संकाय की कमी को दूर करना और उनकी गुणवत्ता को बढ़ाना उच्च शिक्षा को पुनर्जीवित करने की कुंजी है।
भर्ती प्रक्रियाओं को योग्यता-आधारित चयन और प्रशासनिक संबंधी विलंब को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जबकि क्षमता निर्माण कार्यक्रमों को निरंतर व्यावसायिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं शिक्षण मिशन (PMMMNMTT) को SWAYAM जैसी पहलों के साथ जोड़ा जाना चाहिये, जिससे शिक्षकों को व्यापक मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रमों का उपयोग करके अपने कौशल को बढ़ाने में मदद मिल सके।
अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ संकाय विनिमय कार्यक्रम शिक्षण की गुणवत्ता को और बढ़ा सकते हैं तथा वैश्विक संपर्क को बढ़ावा दे सकते हैं।
डिजिटल और हाइब्रिड लर्निंग को बढ़ावा देना: विश्वविद्यालयों को शिक्षा के हाइब्रिड मॉडल को अपनाकर डिजिटल परिवर्तन के अंगीकरण की आवश्यकता है जो ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा को एकीकृत करते हैं।
इसमें वर्चुअल लैब बनाना, एडटेक टूल्स में निवेश करना और सामग्री प्रसार के लिये DIKSHA और SWAYAM जैसे प्लेटफार्मों के उपयोग को प्रोत्साहित करना शामिल है।
डिजिटल डिवाइड को समाप्त करने के लिये, सरकार को ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में किफायती उपकरण एवं विश्वसनीय इंटरनेट उपलब्ध कराने की दिशा में प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ सहयोग करना चाहिये।
शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देना: विदेशी छात्रों और संकाय को आकर्षित करने के लिये, भारत को वीज़ा नीतियों में सुधार करना चाहिये, बुनियादी अवसंरचना में सुधार करना चाहिये तथा वैश्विक-अनुकूल शैक्षणिक वातावरण बनाना चाहिये।
भारतीय विश्वविद्यालयों को IIT से शिक्षा प्राप्त करने के लिये विदेशों में अधिक परिसर स्थापित करने चाहिये तथा अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता बढ़ाने के लिये शीर्ष वैश्विक विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी करनी चाहिये।
अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ संयुक्त PhD और ड्यूअल डिग्री के लिये प्रक्रियाओं को सरल बनाने से वैश्विक शैक्षणिक सहयोग को और बढ़ावा मिल सकता है।
शासन और स्वायत्तता में सुधार: उच्च शिक्षा संस्थानों को अधिक शैक्षणिक और वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करने से निर्णय लेने में नवाचार एवं लचीलापन संभव हो सकता है।
NEP-2020 द्वारा प्रस्तावित भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) जैसे एकल, सशक्त निकाय के साथ वर्तमान नियामक बहुलता को प्रतिस्थापित करने से परिचालन को सुव्यवस्थित किया जा सकता है और प्रशासनिक विलंब को कम किया जा सकता है।
संस्थानों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में छात्रों, संकाय और उद्योग प्रतिनिधियों सहित हितधारकों को शामिल करके पारदर्शी शासन मॉडल भी अपनाना चाहिये।
प्रदर्शन-आधारित वित्तपोषण से जवाबदेही और संस्थागत सुधारों को और बढ़ावा मिल सकता है।
व्यावसायिक शिक्षा और कौशल एकीकरण को बढ़ावा देना: उच्च शिक्षा संस्थानों को व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिये, जैसा कि NEP-2020 में परिकल्पित किया गया है।
विश्वविद्यालयों, उद्योगों और राष्ट्रीय शिक्षुता प्रोत्साहन योजना (Rests) जैसी पहलों के बीच सहयोग से वास्तविक दुनिया में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया जा सकता है।
अंतःविषयक डिग्रियों को प्रोत्साहित किया जाना, जो मूल शैक्षणिक ज्ञान को व्यावहारिक कौशल के साथ जोड़ते हैं, जैसे कि इंजीनियरिंग को कृत्रिम बुद्धि (Simulated intelligence) के साथ या मानविकी को डिजिटल मार्केटिंग के साथ, समग्र स्नातक तैयार कर सकते हैं।
कौशल-आधारित प्रमाणपत्रों को विश्वविद्यालय की डिग्री के साथ एकीकृत करने से शिक्षा को अकादमिक रूप से समृद्ध और रोज़गारोन्मुख बनाया जा सकता है।
समावेशिता और पहुँच को बढ़ावा देना: उच्च शिक्षा सुधारों में सीमांत और कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों को शामिल करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिये तथा पहुँच और अवसरों में समानता सुनिश्चित की जानी चाहिये।
उच्च शिक्षा के खर्चों को कवर करने के लिये एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रों के लिये छात्रवृत्ति जैसी पहलों का विस्तार किया जाना चाहिये।
विश्वविद्यालयों को दिव्यांग विद्यार्थियों के लिये रैंप और ब्रेल पुस्तकालय जैसे भौतिक बुनियादी अवसंरचना में सुधार करना चाहिये।
भाषाई बाधाओं को दूर करते हुए समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने पर NEP-2020 का फोकस लागू किया जाना चाहिये।
पाठ्यक्रम का आधुनिकीकरण: विश्वविद्यालयों को कठिन और पुराने पाठ्यक्रमों के स्थान पर अंतःविषयक और लचीले शिक्षण मॉडल पेश करना चाहिये।
बहु प्रवेश-निकास विकल्प, अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स (ABC) के तहत क्रेडिट ट्रांसफर सिस्टम और प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षा को मानक अभ्यास बनना चाहिये।
संस्थानों को जलवायु विज्ञान, Simulated intelligence, जैव प्रौद्योगिकी और संवहनीयता जैसे उभरते क्षेत्रों को अपने मुख्य कार्यक्रमों में शामिल करना चाहिये।
उद्योगों और अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक निकायों के सहयोग से समय-समय पर पाठ्यक्रम समीक्षा से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि उच्च शिक्षा प्रासंगिक और भविष्य के लिये तैयार बनी रहे।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना: संसाधन संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिये, सार्वजनिक और निजी संस्थाओं को बुनियादी अवसंरचना, अनुसंधान वित्तपोषण एवं नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के लिये सहयोग करना चाहिये।
उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA) के अंतर्गत साझेदारी से सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में गुणवत्ता सुधार लाने में मदद मिल सकती है।
निजी संस्थाओं को इनक्यूबेशन केंद्रों, कौशल विकास कार्यक्रमों और ग्रामीण या आर्थिक रूप से कमज़ोर क्षेत्रों के छात्रों के लिये छात्रवृत्ति में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
सहयोगात्मक उद्यम स्मार्ट कक्षाएँ और अद्यतन प्रयोगशाला सुविधाएँ प्रदान करके परिसरों का आधुनिकीकरण भी कर सकते हैं।
क्षेत्रीय समानता पर ध्यान केंद्रित करना: सभी क्षेत्रों में उच्च शिक्षा तक समान अभिगम सुनिश्चित करने के लिये वंचित क्षेत्रों, विशेष रूप से बिहार, ओडिशा और पूर्वोत्तर क्षेत्रों जैसे राज्यों में लक्षित निवेश की आवश्यकता है।
लद्दाख या पूर्वोत्तर में केंद्रीय विश्वविद्यालयों जैसे विशिष्ट विश्वविद्यालयों की स्थापना से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर किया जा सकता है।
परामर्श कार्यक्रमों के माध्यम से क्षेत्रीय कॉलेजों को IIT और NIT जैसे राष्ट्रीय संस्थानों के साथ जोड़ने से मानकों में सुधार हो सकता है और अधिक संतुलित शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण हो सकता है।
ग्रामीण डिजिटल बुनियादी अवसंरचना का निर्माण और सामुदायिक कॉलेजों को बढ़ावा देने से उच्च शिक्षा सभी के लिये सुलभ हो सकती है।
मुख्यधारा की शिक्षा में माइक्रो-क्रेडेंशियल्स का एकीकरण: डिग्री कार्यक्रमों में माइक्रो-क्रेडेंशियल्स लघु, कौशल-केंद्रित प्रमाणपत्र को शामिल करने से छात्रों को लचीलापन मिल सकता है और उन्हें उद्योग-विशिष्ट कौशल शीघ्रता से हासिल करने में मदद मिल सकती है।
उदाहरण के लिये, पारंपरिक डिग्रियों को Man-made intelligence, ब्लॉकचेन या संधारणीय प्रथाओं में प्रमाणपत्रों के साथ जोड़ने से रोज़गार क्षमता बढ़ सकती है।
ये मॉड्यूलर प्रमाणपत्र छात्रों को अपनी शिक्षा को अनुकूलित करने तथा उसे कॅरियर आकांक्षाओं के साथ संरेखित करने में सहायक होंगे।
शिक्षण प्रयोगशालाओं के रूप में हरित परिसरों का निर्माण: संस्थानों को हरित बुनियादी अवसंरचना और नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों को अपनाकर संधारणीय केंद्रों में परिवर्तित होना चाहिये।
हरित परिसर, विद्यार्थियों के लिये सटीक समय में टिकाऊ प्रथाओं के अधिगम और लागू करने हेतु जीवंत प्रयोगशालाओं के रूप में काम कर सकते हैं।
उदाहरण के लिये, कॉलेज जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के अनुरूप, छात्र-नेतृत्व वाली नवीकरणीय ऊर्जा या जल प्रबंधन परियोजनाओं को अनिवार्य बना सकते हैं।
ये परिसर वास्तविक दुनिया में अत्याधुनिक नवाचारों को लागू करने के लिये निजी हरित प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ साझेदारी भी कर सकते हैं।
वैश्विक सॉफ्ट पावर के लिये सांस्कृतिक शिक्षा का लाभ उठाना: भारतीय विश्वविद्यालयों को योग, आयुर्वेद, दर्शन और प्रदर्शन कला सहित भारत की सांस्कृतिक विरासत पर ध्यान केंद्रित करते हुए विशेष कार्यक्रम स्थापित करने चाहिये।
इन कार्यक्रमों को सतत् विकास या मानसिक स्वास्थ्य जैसे वैश्विक पाठ्यक्रमों के साथ एकीकृत करके, भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक संसाधनों का उपयोग अपनी सॉफ्ट पावर को बढ़ाने के लिये कर सकता है।
ऐसे पाठ्यक्रमों को भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) प्रकोष्ठों के साथ जोड़ने से भारत की परंपराओं को संरक्षित रखते हुए विदेशी छात्रों को आकर्षित किया जा सकता है।
केवल उद्यमिता पर केंद्रित स्टार्ट-अप विश्वविद्यालय: भारत को केवल उद्यमिता को बढ़ावा देने पर केंद्रित विश्वविद्यालय बनाने चाहिये।
ये संस्थान इनक्यूबेशन सहायता, उद्यम पूंजी तक अभिगम और व्यवसाय नवाचार में समर्पित पाठ्यक्रम प्रदान कर सकते हैं।
ऐसे विश्वविद्यालयों को क्षेत्रीय स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्रों से जोड़ने से छात्रों को स्केलेबल स्टार्टअप बनाने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
उदाहरण के लिये, गुजरात की आईक्रिएट (iCreate) पहल को राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया जा सकता है।
निष्कर्ष:
NEP-2020 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये शासन, वित्त पोषण, शोध और शैक्षणिक गुणवत्ता के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में सुधार के लिये संस्थागत स्वायत्तता को बढ़ावा देने, संकाय की कमी को दूर करने तथा उद्योग-अकादमिक संबंधों को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। केवल एक व्यवस्थित सुधार के साथ ही भारत वैश्विक ज्ञान केंद्र बनने की अपनी आकांक्षाओं को साकार कर सकता है। इस दिशा में अब निर्णायक कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
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